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लेखनी प्रतियोगिता -20-May-2023 काव्य प्रतियोगिता

हृदय के तार झंकृत होते



प्रियतम की मैं राह निहारूँ
पथ में बिछा कर पुष्प अनेक
प्राणों का हर तार है गाता
मन में भरा उन्मुक्त अनुराग

आँखें सजल स्वयं ही होती
मानो पथ को रही वो पखार 
उनके आने की आहट भर से
खिल उठते हैं मुरझाए होंठ

पतझड़ में भी बसंत बहार
जो वो आते हैं निज द्वार
मन मंदिर का दीप जले फिर
छंट जाता है गहन तिमिर

वैरागी तन में राग भाव हो
जो वो मेरे संग-संग चलते
प्रकृति का हर कण मुस्काए
कलियों पर भौरों का डेरा

गुंजन करता है जग सारा
सप्तस्वरों के गीत सुरीले
हृदय के तार झंकृत करते
जो उनकी आहट मिल जाए



स्वरचित एवं मौलिक रचना

   डॉ अनुराधा प्रियदर्शिनी
   प्रयागराज उत्तर प्रदेश


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3 Comments

Gunjan Kamal

21-May-2023 06:40 AM

शानदार

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Abhilasha Deshpande

20-May-2023 11:08 PM

beautiful poem

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Punam verma

20-May-2023 09:33 PM

Very nice

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